याद कर!
तेरे भीतर है एक चिंगारी
दबी हुई, ढकी हुई.
कभी गुस्से में आ
खुद पे चिल्ला
पैर पटक!
अपने आलस पे मार एक ज़ोरदार फूंक
उड़ा दे वो सब गर्त, वो सब ठण्डापन
एक लपट उठे भीतर से
चमक उठे तेरा बदन
याद रख, धूल नहीं तू!
तू है अगन!
जिससे चमकता है गगन!
अंगार!
अपनी चिंगारी संभाल
बस वही तेरी पूँजी है,
वही ज़िन्दगी है!
--'पारंगत' पुनीत
September 14
अपनी आग से चमका दे आसमान!
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