धवन जी एक बड़े अधिकारी हैं. अपने ऑफिस में वो कड़क अफसर के रूप में जाने जाते हैं लेकिन दोस्तों के बीच यारों के यार हो जाते हैं. पिछले साल सब गतिविधियां शांत पड़ गयी थीं. अखबार में खबर आयी कि शहर में कोविड के केस लगातार तीसरे दिन भी शून्य रहे तो दोस्तों ने कहा--एक बार फिर से मिला जाए. धवन जी ने कहा, 'थोड़ी सावधानी बरतना बेहतर होगा. होटल में नहीं मेरे घर पर ही मिलते हैं.'
दोस्त सपरिवार उनके घर पहुँच गए. उनकी पत्नी नीलम ने सबकी अच्छी आवभगत की. बातों ही बातों में दोस्तों को एक नयी बात पता चली--पिछले दिनों ही धवन जी को एक बार फिर से प्रमोशन मिला था. बधाइयों का सिलसिला शुरू हुआ. उनके दोस्त साबू जी ने कहा, 'यार धवन, तुमने बड़ी तेज़ी से तरक्की की. एक नहीं कई बार कैरियर में बड़ी छलांग लगायी है.' सहगल जी बोले, 'मेरा अनुमान है ये प्रमोशन भी तुमको 'आउट ऑफ़ टर्न' मिला है. कई वरिष्ठ अधिकारियों को नज़रअंदाज़ करते हुए तुम्हें ये पदोन्नति मिली होगी!'
साबू जी ने कहा, 'हम सब लोगों में सबसे ज़्यादा ऊंचाई तुमको ही मिली है. आज बता ही दो इस सफलता का राज़ क्या है?' धवन जी मुस्कुरा दिए, बोले, 'दोस्तों में क्या ऊंचाई-निचाई? ये बातें छोडो, नीलम ने ख़ास काकोरी कबाब बनाये हैं उसका आनंद लो.' नीलम जी ने तुरंत गर्मागर्म कबाब पेश कर दिए.
साबू जी के बेटे राजेश ने हिचकिचाते हुए कहा, 'धवन अंकल, दोस्तों के लिए नहीं लेकिन हम युवाओं के लिए बता दीजिये आपका राज़ क्या है?' धवन जी ने ठहाका मारा, 'साबू, तेरा बेटा भी तेरे जैसा ज़िद्दी है!' फिर उन्होंने राजेश से कहा, 'अब तुम पूछ रहे तो बताना ही पड़ेगा. दीवार पर ये तस्वीर देख रहे हो?' उसने कहा, 'जी, कृष्ण अर्जुन का रथ चला रहे हैं!'
धवन जी बोले, 'अगर कोई राज़ है तो बस यही है.' साबू जी बोले, 'तुम्हारा मतलब है कृष्ण की भक्ति से ये सफलता मिली है?' धवन जी मुस्कुराये, 'थोड़ी शांति रखो, समझाता हूँ! पांडवों की जीत का सबसे बड़ा कारण ये था कि श्री कृष्ण उनके साथ थे. इसी तरह मेरी कामयाबी में मेरे मार्गदर्शकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है.’
सहगल जी बोले, 'ज़रा खुल के बताओ.'
धवन जी ने कहा, ‘मुझे शुरू में ही ये समझ में आ गया था कि हर इंडस्ट्री के कुछ ऐसे 'थंब-रूल' या फॉर्मूले होते हैं जो अनुभव से ही पकड़ में आते हैं. लोग गलतियां कर-कर के इन बारीकियों को सीखते हैं. इसलिए मैंने अपने कैरियर के हर पड़ाव पर ऐसे मार्गदर्शक ढूंढे जो मुझसे ज़्यादा जानते थे, इंडस्ट्री के बारे में उनकी समझ गहरी थी. उन लोगों की तीखी नज़र और कड़े निरीक्षण में मैं कम वक़्त में ही
वो गहरी बातें जान गया जिन्हें समझने में मेरे सहकर्मियों को बरसों लगे. मैंने अपने मार्गदर्शकों से ये सीखा कि उन गलतियों से कैसे बचा जा सकता है. इसलिए जहाँ पहुँचने में लोगों को 20 साल लगते हैं मैं 10 साल में ही पहुँच गया.'
उन्होंने युवाओं से कहा, 'ये तस्वीर याद रखना. हमारा रथ कौन चला रहा है ये महत्वपूर्ण है!'
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