January 1

मन की गुफा!

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मीटिंग रूम में सब लोग उपस्थित हो चुके थे. सिर्फ निरुक्त जी की कुर्सी खाली थी. वो वक़्त के इतने पाबन्द हैं कि हर मीटिंग में तय समय से 5 मिनट पहले ही पहुँचते हैं. मीटिंग के समन्वयक राजेश ने उनकी सेक्रेटरी रीना को फ़ोन लगाया. रीना ने कहा, 'सर अभी-अभी सी.ए. से मिल कर लौटे हैं, थोड़े परेशान दिख रहे हैं.' राजेश ने पूछा, 'तो क्या हम मीटिंग कैंसिल कर दें? उनके बिना तो इस मीटिंग का कोई अर्थ नहीं है.'

रीना ने याद दिलाया, 'मीटिंग रूम की घड़ी ज़रूर आगे चल रही होगी. मेरी घड़ी के अनुसार अभी भी 5 मिनट बाकी हैं. तसल्ली रखिये, सर पहुंचेंगे.'

फ़ोन रखने के बाद रीना ने उनके केबिन में झाँक कर देखा. निरुक्त जी शून्य में ताकते हुए बैठे थे, टेबल पर रखी कॉफ़ी ठंडी हो रही थी. उनके लिए दिन कठिन था, सुबह 8 बजे से ही वो मीटिंगों में व्यस्त थे. पहले एक जापानी कंपनी के मालिकों के साथ ऑनलाइन चर्चा की, फिर एक ट्रेड-एसोसिएशन के सदस्यों के साथ नाश्ता. उसके बाद कंपनी के सी.ए. के साथ मीटिंग. और अब राजेश की मीटिंग के बाद उनको चेयरमैन सर को प्रेजेंटेशन देना है.

अपनी प्रवृत्ति के विपरीत आज जब वो केबिन में आये तो हड़बड़ी में थे, बिना कुछ बात किये अंदर चले गए. और कोई होता तो तल्खी अपनी सेक्रेटरी पर निकालता, फोन कर के तनाव अपने अधीनस्थों की तरफ धकेलता, और इस तरह की छोटी मीटिंग को तो ना ही कह देता. लेकिन निरुक्त जी शायद किसी और मिट्टी के बने हैं. रीना को पता था अब आगे क्या होने वाला है.

निरुक्त जी ने एक लम्बी सी सांस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं. जब भी अफरातफरी होती है वो आँख बंद कर के दुनिया से कट जाते हैं. कई बार रीना ने देखा है कि भरी भीड़ के बीच भी वो कुछ पलों के लिए ऑंखें बंद कर लेते हैं. लोगों को लगता है वो कुछ सोच रहे हैं. लेकिन एक बार उन्होंने उसे बताया था--

जब चीज़ें अपने बस में नहीं दिखतीं, काम के बोझ से मन परेशान होने लगता है तो मैं आँखें बंद कर के अपने मन की गुफा में चला जाता हूँ. जो पीछे हो गया उसे पीछे छोड़ देता हूँ, दूसरों ने क्या कहा, मुझे क्या बुरा लगा, या क्या गलतियां मैंने की, सब भूल जाता हूँ. आगे की गतिविधियों को भी याद नहीं करता. मन के भीतर घुप्प अँधेरा हो जाता है. चुपचाप बैठकर साँसों पर ध्यान केंद्रित करता हूँ. धीरे-धीरे साँस स्थिर होने लगती है. शांत हो जाता है मन.

रीना को पता था कुछ ही पलों में उनके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान खिलेगी, वो धीमे-धीमे ऑंखें खोलेंगे, एक अंगड़ाई लेंगे. ऐसा ही हुआ. वो उठे, रीना के पास आये और बोले, 'मैं अगली मीटिंग के लिए जा रहा हूँ. प्रोजेक्ट टीम को याद दिलाना कि चेयरमैन सर से मिलने के पहले प्रेजेंटेशन का रिहर्सल भी करना है!'

वो तेज़ी से बाहर निकल गए. रीना के चेहरे पर एक मुस्कान आयी. मीटिंग में अभी भी 1 मिनट का वक़्त बाकी था.

एक्शन पॉइंट: अफरातफरी हो तो भी मन को कैसे शांत रखें, ये कला सीखिए!


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emotion management, power of focus


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