व्यास जी के ऑफिस में आज फिर से उद्यमियों का जमघट लगा. युवा उद्यमी उनसे व्यवसाय के गुर सीखने
आते हैं. औपचारिक रूप से कोई विषय तय नहीं होता. युवा व्यवसायी अपनी परेशानियां बताते हैं और व्यास जी
समाधान सुझाते हैं.
अबकी बार बात व्यास जी ने खुद शुरू की, ‘दोस्तो! व्यवसाय में मज़ा आ रहा है?’ सवाल ने सबको चौंका दिया.
क्योंकि जब बात व्यवसाय की होती है तो नफे-नुकसान का ज़िक्र होता है, बाजार के उतार-चढ़ावों पर चर्चा होती है.
‘मज़ा आ रहा है?’ ये सवाल तो सिलेबस के बाहर का सवाल था. कमरे में ख़ामोशी थी. लोग अपने मन में उतर कर
इसका जवाब टटोल रहे थे.
कुछ देर बाद युवा मित्र नवीन ने कहा, ‘आप मज़े की बात करते हैं? मुझे तो हरदम डर सताता रहता है. हमारी
प्रतिस्पर्धी कम्पनी हर दिन कोई नया शगूफा छोड़ देती है. फिर हमें बाजार में भारी उठापटक करनी पड़ती है.’
रोशन ने कहा, ‘मैं सहमत हूँ. मज़ा नहीं आता. रोज़ कोई न कोई मुश्किल सामने खड़ी रहती है. तनाव हमेशा सर
पर होता है.’
धर्मवीर ने पूछा, ‘व्यास जी, आपको मज़ा आता है क्या?’ एक बार फिर से चुप्पी हो गयी. सब की नज़र व्यास जी
पर थी. वो बोले, ‘मित्रो, शुरू में तो मैं भी बहुत परेशान रहता था. कोसता था उस घड़ी को जब मैंने व्यवसाय की
दुनिया में कदम रखा. लेकिन फिर मज़ा आने लगा.’
नवीन ने पूछा, ‘वक़्त के साथ क्या बदला?’ उन्होंने समझाया, ‘वक़्त का इससे कोई सम्बन्ध नहीं. बहुत से लोग
बरसों बाद भी संघर्ष करते रहते हैं. बदलाव इसलिए हुआ कि मैंने लक्ष्य बदल दिए.’ कई आवाज़ें एक साथ
उठीं–’कैसे? हमें भी बताइए!’
व्यास जी ने राज़ खोला, ‘पहले मैं अपने प्रतिस्पर्धियों को देख के अपने लक्ष्य तय करता था. सोचता था वो जो भी
करते हैं मैं उनसे बेहतर करूँगा. लेकिन हमेशा पिछड़ा रहता था. या फिर सोचता था कि नए साल में पिछले साल
के मुकाबले 20% ज़्यादा मुनाफा कमाना है. कमाता भी था, लेकिन मज़ा नहीं आता था.’ धर्मवीर ने पूछा, ‘तो मज़ा
कैसे आया?’
वो बोले, ‘एक दिन अचानक दिमाग़ की बत्ती जली–- जब तक मैं दूसरों के लक्ष्य के पीछे भागूंगा, मैं आगे नहीं जा
पाऊंगा. उनके हिसाब से मुझे हर दिन बदलाव करने पड़ेंगे. लक्ष्य को हासिल कर लिया तो भी मज़ा नहीं था
क्योंकि वो लक्ष्य तो मेरे थे ही नहीं! फिर मैंने खुद अपने लक्ष्य निर्धारित किये. यहाँ ध्यान देनेवाली बात ये है
कि लक्ष्य ऐसे हों जिनको आप दिल से महसूस कर सकें. जो आपके लिए मायने रखते हों. मुश्किलें तो फिर भी
आएँगी लेकिन काम बोझ नहीं लगेगा.’
‘जैसे, मैंने तय किया कि इतनी अच्छी ‘कस्टमर सर्विस’ करनी है कि ग्राहक खुद मेरी सिफारिश मित्रों से करे.
इसके लिए मुझे पहले से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी. लेकिन हर बार जब ग्राहक मुझे नया व्यवसाय दिलाते तो
दिल खुश हो जाता. सिर्फ 20% नहीं, अगले साल मैंने 56% ज़्यादा मुनाफा कमाया!’
युवा मित्रों के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी. वो समझ गए, अगर काम में मज़ा लाना है तो गणित से बाहर निकल
कर दिल का लक्ष्य बनाना होगा!
एक्शन पॉइंट: ऐसे लक्ष्य बनाइए जिनको आप दिल से महसूस कर सकें!
September 22
लक्ष्य को महसूस करो!
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